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शंखनाद

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शंखनाद कानों में गुंजित, निज सेना तैयार करो। नयन अश्रु ले बैठे हो क्यों, इन में अब तुम ज्वाल भरो। देख पड़ोसी को सीखो तुम, क्षण में क्या से क्या हो जाए। सजग सचेत रहो पल कहता, समय हाथ से निकल न जाए।। उठो सोने वालों सवेरा हुआ है…... शंखनाद ******** महाभारत की संरचना कर नवयुग का बुनना ताना।। सत्य धर्म की डोरी थामे शीर्ष तिरंगा फहराना।। हिय कलुषता लेकर अंबर चाहे धरणी पर डेरा। बिछा बिसातें नित पथ नूतन पग पीछे खींचें तेरा । पंचजन्य सी शंखनाद कर वीर भारती बढ़ जाना।।…. सत्य धर्म की डोरी थामे शीर्ष तिरंगा फहराना।।... दीपों की सब लड़ियाँ मिलकर निज आँगन को रहीं जला । नमक पोटली डाल जड़ों में नीव घरोंदा रहीं गला।। कर्मक्षेत्र में पार्थ रूप धर धर्म राज्य फिर से लाना।।... सत्य धर्म की डोरी थामे शीर्ष तिरंगा फहराना।।... कागा कोकिल स्वर में गाएँ बैठे बगुले भगत बने । मोती छीन हंस से ऐंठें सत्ता मद में लिप्त घने। आक्रोशित हिय ध्येय भेदना हीरक बन नभ पर छाना।।…. सत्य धर्म की डोरी थामे शीर्ष तिरंगा फहराना।। पूजा शर्मा "सुगन्ध" चित्राभार गूगल

शीश शत्रु का खंडित कर..

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माँ भारती के वीर सपूतों के जीवन का बस एक ही ध्येय है... माँ भारती की शीश सदा गर्व से ऊँचा रहे  और भारत की यश पताका, हमारा ध्वज तिरंगा सदा सम्मानपूर्वक देश के सर्वोच्च शिखर पर लहराता रहे आन बान शान से... इसी ध्येय को पूरा करने में मातृभूमि के ये वीर सपूत अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करते इसीलिए ये भारत के हर व्यक्ति के हृदय में बसते हैं और इनके लिए हर मस्तक सम्मान में झुकता है.. जय हिंद, जय हिंद की सेना🙏🙏🙏🇮🇳🇮🇳 शीष शत्रु का खंडित कर हम इक हुंकार भरेंगे। चंदन से पावन आंगन को सर्प विहीन करेंगे। डगमग डगमग दिग्गज डोले नभ यशगान सुनाए। थरथर थरथर कांपे रिपु मन पग जब शौर्य बढाए।् सिंह समान गर्जना होगी पत्थर हिय दहलेंगे।। शीष शत्रु का खंडित कर हम इक हुंकार भरेंगे। चंदन से पावन आंगन को सर्प विहीन करेंगे। पुरवाई धर रूप प्रचंडी रिपु से टकराएगी । भेड़ खाल में छिपे भेड़िये धरा सतह लाएगी। घर घर की फुलवारी में अब देशभक्त उपजेंगे।। शीष शत्रु का खंडित कर हम इक हुंकार भरेंगे। चंदन से पावन आंगन को सर्प विहीन करेंगे। रक्त धार से मातृभूमि का भाल सुशोभित करते। चक्र तिरंगा बड़े गर्व से ओढ धरा प

अपना अतिथि धर्म दिखाओ

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एक गाल पर थप्पड़ खाकर, दूजा आगे करते आए। वीर पुत्रों की सजा चिताएं, दंड सदा हम भरते आए। बहुत हुई अब सहनशीलता, चलो उठो अब थाल सजाओ नया मंत्र जनजन में फूँको , एक के बदले चार खिलाओ।। जय हिंद, जय हिंद की सेना 🙏🙏🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🙏🙏🙏 अतिथि धर् म ******** मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ। सदियाँ बीतीं खाते खाते, चलो उठो अब भोज कराओ।। नयन थके अब दृश्य ताकते, मुख कपोल भी आज कराहें। बहुत दुलार दिया गाँधी को, चलो भगतसिंह आज सराहें। जितना अब तक खाया हमने, तोल मोल कर गणित लगाओ। अल्प अंश भी बचे न बाकी, एक के बदले चार खिलाओ।। मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ।…. रावण मेघनाथ की टोली, गली-गली में डाले डेरा। कौरव दल की सैन्य शक्ति ने, सारे चौराहों को है घेरा। सारी खरपतवार निकालो, नव भविष्य की पौध उगाओ। मान भंग कर आज शत्रु का, उसको पथ की धूल चटाओ।। मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ।... जैसे को तैसा भोजन दो, थोड़ा सा सत्कार करो तुम। सच्चा मानव धर्म सिखाकर, मन भीतर प्रकाश भरो तुम। गुण गाते जाएं वो तुम्हारा , कुछ ऐसा अब खेल रचाओ।

हृदय चुभें जब तीर व्यंग्य के..

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हृदय चुभें जब तीर व्यंग्य के परोपकार,दया ,प्रेम, सहानुभूति, क्षमा केवल सुपात्र को ही देनी चाहिए...कुपात्र को यदि ये उपहार मिलें तो इतिहास साक्षी है विनाश देने वाले का ही होता है..सहनशीलता की सीमा निर्धारित करना भी परम आवश्यक है अत्यधिक सहनशीलता कायरता का रूप ले लेती है...बस यही भाव इस गीत के माध्यम से आप सभी के समक्ष रख रही हूँ.. 🙏🙏🙏🙏🙏 हृदय चुभें जब तीर व्यंग्य के, इक हुंकार जरूरी है। रिसन करें जब फटी बिबाई, इक उपचार जरूरी है। दूध पूत का छीन बाँटते फिर भी हम हिय के काले। माँस नोंचकर अपने तन का गिद्ध भेड़िये हैं पाले।। दमन दर्प का करने हेतु इक फुंकार जरूरी है।।…. बरसों दुबके रहे खोल में अंतस पर पाले जाले। पैबंदों की काया ओढे नेत्र बंद मुख पर ताले।। मौन नयन के द्वारे पहुँचा अब ललकार जरूरी है।।... वर्षा करते रहे प्रेम की सदा जोंक के साथ जिए। बंजर धरणी रहे सींचते प्रेमांकुर की आस लिए। नागफनी जब अंतस चीरे तब प्रतिकार जरूरी है।।... मान कुटंबी सब सर्पों को निज हिय में स्थान दिए। भक्षक के रक्षण में हमने अपनों पर ही वार किए। चीख रहे जब हिय के छाले इक टंकार जरूरी