अपना अतिथि धर्म दिखाओ
एक गाल पर थप्पड़ खाकर, दूजा आगे करते आए।
वीर पुत्रों की सजा चिताएं, दंड सदा हम भरते आए।
बहुत हुई अब सहनशीलता, चलो उठो अब थाल सजाओ
नया मंत्र जनजन में फूँको , एक के बदले चार खिलाओ।।
जय हिंद, जय हिंद की सेना
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अतिथि धर्म
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मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ।
सदियाँ बीतीं खाते खाते, चलो उठो अब भोज कराओ।।
नयन थके अब दृश्य ताकते, मुख कपोल भी आज कराहें।
बहुत दुलार दिया गाँधी को, चलो भगतसिंह आज सराहें।
जितना अब तक खाया हमने, तोल मोल कर गणित लगाओ।
अल्प अंश भी बचे न बाकी, एक के बदले चार खिलाओ।।
मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ।….
रावण मेघनाथ की टोली, गली-गली में डाले डेरा।
कौरव दल की सैन्य शक्ति ने, सारे चौराहों को है घेरा।
सारी खरपतवार निकालो, नव भविष्य की पौध उगाओ।
मान भंग कर आज शत्रु का, उसको पथ की धूल चटाओ।।
मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ।...
जैसे को तैसा भोजन दो, थोड़ा सा सत्कार करो तुम।
सच्चा मानव धर्म सिखाकर, मन भीतर प्रकाश भरो तुम।
गुण गाते जाएं वो तुम्हारा , कुछ ऐसा अब खेल रचाओ।
एक तंदुल से पेट फिर, ऐसा सेवा भाव दिखाओ।।
मेरे भारत के वीरों अब, अपना अतिथि धर्म दिखाओ।...
पूजा शर्मा "सुगन्ध"
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